क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, इन 3 अनुष्ठानों के बिना अधूरी है पूजा
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर (Ram Temple Ayodhya) में भगवान रामलला की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा को अब कुछ दिन ही शेष हैं. रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को है. समारोह की तैयारी अब अंतिम चरण में है. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त का क्षण 84 सेकंड का है, जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा. भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों होगी. इस दौरान गर्भ गृह में पीएम मोदी के अलावा चार लोग मौजूद रहेंगे. क्या आपको मालूम है कि किसी भी मंदिर में मूर्ति स्थापना से पूर्व प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है. दरअसल नए मंदिर में मूर्ति स्थापना पर प्राण प्रतिष्ठा किया जाना आवश्यक है. बिना इसके मूर्ति पत्थर की आकृति मात्र ही रहती है. इस अनुष्ठान के लिए शुभ मुहूर्त का होना आवश्यक है.
शुभ मुहूर्त में की गई प्राण प्रतिष्ठा ही फलकारी होती है और कहा जाता है कि देव साक्षात उस मूर्ति में निवास करते हैं. अयोध्या राम मंदिर में होने जा रहे प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के लिए 2 मंडप व 9 हवन कुंड तैयार किए जा रहे हैं. जहां देशभर से पहुंचे 121 ब्राह्मण पूजा-अर्चना करेंगे.
प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति होती है पूजनीय
उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी बताते हैं कि नई मूर्ति स्थापना से पूर्व प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति केवल पत्थर के टुकड़े से अधिक नहीं होती. प्राण प्रतिष्ठा कर मूर्ति में प्राण डाले जाते हैं अर्थात उसे जीवित किया जाता है, जिसके दर्शन मात्र से फल की प्राप्ति होती है. वह कहते हैं कि जब कारीगर द्वारा मूर्ति बनाई जाती है, तो वह सामान्य मूर्ति के सिवा कुछ नहीं होती है, लेकिन जब उसे मंदिर में स्थापित किया जाता है और मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, तब वह पूजनीय होती है.
जलाधिवास, फलाधिवास और फूलाधिवास जरूरी
उन्होंने कहा कि इसके लिए शुभ मुहूर्त से तीन दिन पहले से अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं. सबसे पहले मूर्ति के नीचे वास्तु रखा जाता है. इसके उपरांत तीन दिन तक मंत्रों द्वारा जलाधिवास, फलाधिवास और फूलाधिवास कराया जाता है, जिसमें जल, फल, फूल से मूर्ति को वास करवाया जाता है. तब जाकर मूर्ति में मंत्रों द्वारा प्राण डाले जाते हैं और फिर वह सजीव की तरह मनोकामना पूरी करने वाली हो जाती है. इस दौरान प्रतिमा को विभिन्न पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया जाता है. नवीन वस्त्र धारण कर बीज मंत्रों के उच्चारण से मूर्ति को उसके स्थान पर स्थापित किया जाता है और प्रतिमा की आंखों पर बंधी पट्टी खोली जाती है.
राम मंदिर के लिए 500 साल का संघर्ष
महंत आशुतोष पुरी बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर की पुनः स्थापना सनातनियों के लिए गर्व की बात है. इसके लिए 500 सालों का संघर्ष रहा. कई साधु संतों ने बलिदान दिया, लड़ाई लड़ी, तब जाकर आज यह शुभ दिन देखने को मिल रहा है.