"सरकारी स्कूलों पर फिर बढ़ेगा विश्वास – शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव"

"सरकारी स्कूलों पर फिर बढ़ेगा विश्वास – शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव"

रायपुर/ प्रदेश के नए शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव का कहना है कि पहले जमाने में सरकारी स्कूलों का इतना ज्यादा क्रेज था कि उसमें एडमिशन के लिए लोग एप्रोच लगाने का काम करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

डॉ. रमन सिंह की सरकार के समय सरकारी स्कूलों का क्रेज बढ़ा था, लेकिन पांच साल में कांग्रेस सरकार ने ऐसा किया कि सरकारी स्कूलों का क्रेज नहीं रहा। हमारा प्रयास रहेगा कि ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे लोगों का विश्वास सरकारी स्कूलों पर बढ़े और अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में करवाएं। गजेंद्र यादव से आईएनएच और हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने जो खास बात की, वह विस्तार से प्रस्तुत है।

मंत्रिमंडल विस्तार के लिए कई नाम चर्चा में आते रहे, आपका नाम पहले से सूची में था, अंत तक रहा, क्या सेटिंग बिठाई थी ?
भाजपा में ऐसी कोई सेटिंग नहीं होती है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री संयुक्त रूप से कोई फैसला लेते हैं। मुझे जो नई जिम्मेदारी दी गई है, उसको पूरा करने का प्रयास करेंगे। पार्षद से लेकर पार्टी में विभिन्न पदों पर काम किया। पार्टी को लगा कि इस कार्यकर्ता को मौका देना चाहिए, तो मौका दिया।

आपको राजनीति में सियासत में कौन लेकर आए ?
दाऊ कल्याण सिंह से लेकर मप्र में शिक्षा मंत्री रहे प्रेमप्रकाश पांडेय का भी हमारे निवास में आना-जाना रहता था। हमारे पिता आरएसएस से जुड़े हुए थे। ताराचंद साहू ने उस समय कहा था मैं लोकसभा का चुनाव लड़ रहा हूं। उनके कहने पर मैंने मतदाता पर्ची बांटने का काम किया था, तब मैं पढाई कर रहा था। उस समय ताराचंद साहू भाजपा के जिला अध्यक्ष थे। इसके बाद हेमचंद यादव जिलाध्यक्ष बने। उन्होंने भी चुनाव लड़ा तो उनके चुनाव में भी पर्ची बांटने का काम मैंने किया। इसके बाद 1998 और 99 सरकार के गिरने से भी चुनाव हुए थे। लगातार पर्ची बांटने के कारण एक कार्यकर्ता के रूप में पहचान बन गई थी। उस समय संगठन के चुनाव हुए तो हेमचंद यादव ने कहा, वार्ड अध्यक्ष तू ही बन जा भाजपा का, तो मैं भाजपा का वार्ड अध्यक्ष संयोग से बन गया। उस समय पिता जी से हेमचंद यादव ने फोन पर बात भी की थी, उन्होंने मना कर दिया था, इसके बाद भी श्री यादव ने मुझे वार्ड अध्यक्ष बना दिया। इसको लेकर पिता जी नाराज भी हुए थे। दिसंबर 1999 में नगरीय निकाय चुनाव हुए तो मैं जिस वार्ड से था, वह वार्ड ओबीसी आरक्षित हो गया तो पार्टी के निर्देश पर पार्षद का चुनाव लड़ा।

पार्षद के बाद की कहानी इतनी लंबी क्यों रही, कौन था जिसने आपको बढ़ने नहीं दिया?
ऐसा कुछ नहीं है। पार्षद बनने के बाद जब 2003 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी तो उस समय प्रदेश संगठन के किसान मोर्चा में आ गया। इसमें काम करने का अवसर मिला। स्काउट-गाइड में राज्य सचिव का भी काम किया।

चुनाव लड़ने के बारे में कब सोचा?
उस समय ऐसा कुछ सोचा नहीं था। हेमचंद यादव विधानसभा और ताराचंद साहू लोकसभा का चुनाव लड़ते थे। हम पार्टी के लिए काम करते थे। 2015 में स्काउट गाइड के काम के बाद विधानसभा को लेकर रूचि बढ़ी। 2018 में कोशिश की थी, लेकिन तब सफलता नहीं मिली, पर 2023 में मौका मिला और जीत भी गए। लोगों का ऐसा मानना था कि हेमचंद यादव नहीं रहे तो मैं चुनाव लड़ें तो लोगों की इच्छा के अनुरूप चुनाव लड़ने का मौका मिला।

दुर्ग बड़ा खतरनाक माना जाता है, यहां तो कांग्रेस बनाम कांग्रेस और भाजपा बनाम भाजपा भी रहता है तो इसमें अपने को सुरक्षित कैसे रखते हैं?
दुर्ग खतरनाक नहीं है, दुर्ग बहुत अच्छा है। हमारा दुर्ग तो बहुत शांत और मिलनसार दुर्ग है। दुर्ग और भिलाई की तासीर में जरूर बहुत अंतर है। दुर्ग जिला वैचारिक रूप से भाजपा का है। प्रेमप्रकाश पांडेय उस समय बहुत दौरा करते थे। चाहे प्रेमप्रकाश पांडेय हो या ताराचंद साहू हो सभी वरिष्ठ नेताओं ने गोविंद सारंग के साथ काम किया है। इसमें सरोज पांडेय का भी नाम है। मेरे लिए प्रेमप्रकाश पांडेय और सरोज पांडेय वरिष्ठ हैं। इनके सामने तो मैं बच्चा हूं। इनके रहते मुझे काम करने में कहीं कोई परेशानी नहीं है।

चुनाव बड़े अंतर से जीते, वो किसके कारण जीते?
ये जो जीत है मेरे अकेले के कारण तो मिली नहीं। इस जीत में मेरे पिता जी, जिन्होंने आरएसएस का जीवन भर काम किया। 55 साल तक शहर में तपस्या की, उसका परिणाम मुझे जीत के रूप में मिला। इसी के साथ मैं 1996 से भाजपा में काम कर रहा हूं। मेरे साथ काम करने वाले कार्यकर्ता भी रहे हैं। हमारे कार्यकर्ताओं को लगा कि हमारे जैसा कोई आदमी चुनाव लड़ रहा है। बस्ती और शहर के लोगों को लगता था हमारा अपना आदमी है। सबके प्रेम, विश्वास और सहयोग के कारण जीत मिली। करीब 13 हजार लोगों ने मेरी जानकारी के बिना ही मेरा प्रचार किया।

अरुण वोरा क्या लोगों को गैर लग रहे थे?
अरुण वोरा बहुत सज्जन हैं। मोतीलाल वोरा जब राज्यपाल बने तो उनके कहने पर अरुण वोरा को टिकट मिली। अरुण वोरा जो बोलते थे वो कांग्रेस में अंतिम लाइन रहती थी। लोगों को लगा वोराजी वोराजी बहुत हो गया, मेरे बारे में लगा ये नए हैं तो मुझे लोगों का प्यार मिला और मेरी जीत हुई।

आठ माह कैसे कटे, जनवरी से आपका नाम मंत्री के लिए चल रहा था?
भगवान की कृपा से टिकट मिली। जनता ने विश्वास और उम्मीद से जितवाने का काम किया। मेरी सोच थी, जनता ने भरोसा किया तो उनके लिए ईमानदारी से काम करूं। सड़कों को कैसे ठीक करवा सके। शहर के विकास के लिए कैसे बजट ला सके। यही सोचता था। मुख्यमंत्री से जब मिला, किसी न किसी विकास के काम को लेकर ही मिला, कभी भी व्यक्तिगत काम से नहीं मिला।

आपके समाज के लोगों ने तो धमकी दी थी कि हमारे समाज के व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाया तो आंदोलन किया जाएगा?
समाज के लोगों ने क्या किया और कहा इसके बारे में पहले मुझे जानकारी नहीं थी। मुझे जब जानकारी हुई तो मैंने समाज वालों से कहा आप चले मुख्यमंत्री से मिलने और उनके सामने आंदोलन को वापस लेने की बात कहे। मुझे यह सब पसंद नहीं है। इसके बाद सब मुख्यमंत्री से मिलने गए थे और आंदोलन वापस लेने का ऐलान किया।

आप सबका आभार जता रहे हैं, आप देवेंद्र यादव के कितने आभारी है?
देवेंद्र यादव से गजेंद्र यादव का कोई वास्ता नहीं है। देवेंद्र यादव भिलाई से हैं। वो क्या हैं उससे हमें कोई सरोकार नहीं है। भाजपा किसी प्रतिद्वंदी को देखकर कुछ तय नहीं करती है। देवेंद्र यादव को मैं कभी अपना प्रतिद्वंदी नहीं मानता।

स्कूली शिक्षा मंत्रालय आपको मिला है, इसको लेकर दिमाग में क्या है?
मैं खुद सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं। मेरे कई मित्र हैं जो इंजीनियर हैं। डॉक्टर हैं ये सारे मित्र मेरे सहपाठी थे। जब मैं छठी क्लास में प्रवेश के लिए सरकारी स्कूल में गया था तो उस समय 60 प्रतिशत जरूरी थी। स्कूलों में प्रवेश के लिए मेरे पास भी राजनीति में आने के बाद फोन आते थे। उस समय सरकारी स्कूलों का बड़ा क्रेज था। आज सरकारी स्कूलों में लोग क्यों जाना नहीं चाहते हैं, यह सोचता हूं। मेरा प्रयास यही रहेगा कि लोगों का विश्वास फिर से सरकारी स्कूलों पर हो। डा. रमन सिंह जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने 15 साल में बहुत अच्छा काम किया। मेरे कई मित्र हैं जो प्राइवेट स्कूल चलाते हैं। उनका फोन आता था कि हमारे यहां एडमिशन कम हो रहा है और सरकारी स्कूलों में बढ़ रहा है। बीच में जो पांच साल कांग्रेस की सरकार आई, इसमें अंधाधुंध तबादले किए गए। उसके कारण स्कूल शिक्षक विहीन हो गए या शिक्षकों की कमी हो गई। पहले विषयवार शिक्षकों के तबादले होते थे, कांग्रेस सरकार में किसी भी बात का ध्यान रखे बिना तबादले किए गए। हम वापस ऐसा काम करेंगे जिससे लोग वापस सरकारी स्कूलों की तरफ लौटे और अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में करवाएं।

आत्मानंद स्कूलों की बहुत प्रशंसा होती है?
आत्मानंद स्कूलों के बारे में मैं यही कहना चाहता हूं। भूपेश बघेल ने आत्मानंद स्कूल खोले अच्छी बात है। अच्छी बिल्डिंग बनने से कोई अच्छा स्कूल नहीं हो सकता है। प्रकाश जावड़ेकर जब स्कूली शिक्षा मंत्री थे तब पूरे देश में एक नियम लागू किया था, बाद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी उसको रखा गया। जो भी शिक्षक का काम करेंगे, उनको बीएड, डीएड करना जरूरी है। इस नियम के विरूद्ध आत्मानंद स्कूल में जो शिक्षक रखे गए उनकी स्थानीय स्तर पर भर्ती की गई। जिला शिक्षा विभाग के बाबुओं ने भी अपने रिश्तेदारों की भर्ती करवा दी। आत्मानंद स्कूलों को डीएमएफ के अंतर्गत कर दिया था। जिस जिले में डीएमएफ फंड में पैसा है, वहां ठीक है, जहां नहीं है वहां का शिक्षक दर-दर भटके। यह ठीक व्यवस्था नहीं थी। इसको देखते हुए 413 स्कूलों को पीएम श्री स्कूल योजना में जोड़ा है। आने वाले समय में बाकी स्कूलों को भी पीएम श्री योजना में जोड़ने का काम करेंगे।

शिक्षकों की भर्ती को लेकर कोई योजना है?
अभी तो मुख्यमंत्री ने बड़ा काम युक्तियुक्तकरण करने का किया है। यह एक अच्छा निर्णय है। माना इसमें सब संतुष्ट नहीं हो सकते हैं।