व्यक्तिगत रंजिश में मी लॉर्ड ने पार की हद, ससुर के झगड़े में DSP को भेज दिया जेल; खतरे में कुर्सी

व्यक्तिगत रंजिश में मी लॉर्ड ने पार की हद, ससुर के झगड़े में DSP को भेज दिया जेल; खतरे में कुर्सी

हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट की ओर से कराई गई एक उच्च-स्तरीय जांच में यह साबित हुआ है कि कांजीपुरम के प्रिंसिपल जिला एवं सत्र न्यायाधीश पा. यू. चेम्मल ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए व्यक्तिगत रंजिश के चलते एक डीएसपी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। जस्टिस एन. सतीश कुमार ने मंगलवार को जांच रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट रजिस्ट्री को आदेश दिया कि इसे विजिलेंस कमेटी (वरिष्ठ न्यायाधीशों का पैनल) के समक्ष अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए रखा जाए। साथ ही, मामले को ट्रांसफर कमेटी को भी भेजा जाए ताकि तत्काल प्रभाव से न्यायाधीश का कांजीपुरम से हटाया जाए।

पूरा विवाद बहुत दिलचस्प है

मामला इसी साल जुलाई का है। वलजाबाद स्थित एक बेकरी में अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले ग्राहक मुरुगन और बेकरी मालिक शिवकुमार के बीच बासी केक को लेकर विवाद हुआ था। बेकरी मालिक न्यायाधीश चेम्मल के पूर्व पीएसओ आर. लोकेश्वरन का ससुर था। पुलिस ने दोनों पक्षों की शिकायतें कम्युनिटी सर्विस रजिस्टर में दर्ज कर उसी दिन समझौते के आधार पर मामले को बंद कर दिया

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जज चेम्मल को संदेह था कि उनके पूर्व पीएसओ लोकेश्वरन उनके खिलाफ गलत जानकारी फैला रहे थे। इसके चलते, जज ने पुलिस को लोकेश्वरन और उनके परिवार के खिलाफ अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। जब पुलिस ने इसमें हिचकिचाहट दिखाई, तो जज ने मौखिक रूप से कार्रवाई की चेतावनी दी। इसके बाद दो एफआईआर दर्ज की गईं- एक शिकायतकर्ता पार्वती के परिवार के खिलाफ और दूसरी पीएसओ के पक्ष के खिलाफ।

न्यायाधीश की विवादित कार्रवाइयां 4 सितंबर को न्यायाधीश ने स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश पारित कर लोकेश्वरन और उनके परिजनों को कांजीपुरम से बाहर रहने का निर्देश दिया।

8 सितंबर को उन्होंने जांच अधिकारी डीएसपी एम. शंकर गणेश को तलब कर बेकरी मालिक की गिरफ्तारी न करने का आरोप लगाया और फिर उन्हें एससी/एसटी अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्य की उपेक्षा) के तहत न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

हाईकोर्ट की दखलअंदाजी 9 सितंबर को कांजीपुरम एसपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सतीश कुमार ने डीएसपी की रिमांड को “पूरी तरह से अनुचित” बताते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि न्यायालय न तो पुलिस को गिरफ्तारी के लिए बाध्य कर सकते हैं और न ही इस प्रकार स्वप्रेरणा से आदेश पारित कर सकते हैं। इसके साथ ही बाहिष्करण आदेश को भी खारिज कर दिया गया।

जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष हाईकोर्ट रजिस्ट्रार (विजिलेंस) जैसिंथा मार्टिन की अगुवाई में हुई जांच में पाया गया कि:

न्यायाधीश ने पुलिस पर अपने पूर्व पीएसओ के खिलाफ केस दर्ज कराने का दबाव डाला।

उन्होंने फूड सेफ्टी ऑफिसर पर भी दबाव बनाकर बेकरी पर छापेमारी कराई।

स्थानीय मेडिकल स्टोर पर भी कार्रवाई करवाई, जो उनके अधिकारों के दुरुपयोग का संकेत देता है।

एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के. एम. डी. मुहिलन ने अदालत को बताया कि एसपी, डीएसपी, पीएसओ और फूड सेफ्टी ऑफिसर के बयान दर्ज किए गए हैं और सभी ने आरोपों की पुष्टि की है।

अदालत की टिप्पणी जस्टिस सतीश कुमार ने कहा, “ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों को कानून के तहत व्यापक विवेकाधिकार प्राप्त होता है, लेकिन इस विवेक को निजी दुश्मनी निपटाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना न्यायिक आचरण का गंभीर उल्लंघन है।’’ उन्होंने यह भी लिखा कि आरोप न केवल विश्वसनीय हैं बल्कि यह स्पष्ट रूप से न्यायिक शक्ति के दुरुपयोग को दर्शाते हैं। इसलिए अनुशासनात्मक कार्रवाई जल्द से जल्द की जानी चाहिए। अब जबकि जांच रिपोर्ट विजिलेंस और ट्रांसफर कमेटियों के पास है, न्यायाधीश चेम्मल पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और कांजीपुरम से ट्रांसफर लगभग तय माना जा रहा है।