भाजपा में बगावत, टिकट कटने से नाराज छाया पार्षद ने निर्दलीय नामांकन फ़ार्म लिया, सोशल मीडिया पर शेयर कर सियासी हंगामा तेज किया 

भाजपा में बगावत, टिकट कटने से नाराज छाया पार्षद ने निर्दलीय नामांकन फ़ार्म लिया, सोशल मीडिया पर शेयर कर सियासी हंगामा तेज किया 

 


दुर्ग । नगर निकाय चुनाव से पहले भाजपा में बगावत के सुर तेज़ हो गए हैं। टिकट वितरण से असंतुष्ट छाया पार्षद अभिषेक टंडन ने  वार्ड नंबर 22 , स्टेशन पर  से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन फ़ार्म लिया  है। सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए उन्होंने खुद इसकी जानकारी दी और अपने समर्थकों को संकेत दिया कि वे अब भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार के बजाय निर्दलीय चुनाव लड़ने के तैयारी कर ली हैं।बताया जाता है की इसके पहले भाजपा के चुनावी पैनल में वार्ड क्रमांक 19 से तारा अभिषेक टंडन ही प्रबल दावेदार थे और  उनका नाम भी प्रमुखता के साथ पैनल में रखा गया था लेकिन जैसे ही अंतिम क्षणों में टिकट कटने की संभवना सामने आई अभिषेक टंडन तत्काल निर्णय लेते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया ,मिली जानकरी के मुताबिक अभिषेक टंडन की पत्नी तारा टंडन का भी टिकट कट चुका है सुनने में आ रहा था कि उन्हें वार्ड क्रमांक 19 से उम्मीदवार बनाने की रणनीनीत थी लेकिन आख़िर समय में वह राणीनीति से बाहर हो गई मालूम हो की इसके पहले तक वे वार्ड क्रमांक की छाया पार्षद थी अनुसूचित जाति महिला होने के कारण इस बार उन्होंने अपने पति तारा अभिषेक टंडन के लिए पार्टी से टिकट की मांग रखी थी आपको बात दे की वार्ड क्रमांक 60 के निवासी एवं पूर्व निर्दलीय  पार्षद  प्रमोद पाटिल  की टिकट देने की बात सामने आ रही है । इससे टंडन खेमे में नाराजगी देखी जा रही है। पार्टी का यह फैसला न केवल टंडन समर्थकों को रास नहीं आया, बल्कि भाजपा के लिए भी यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के सामने अभिषेक टंडन का निर्दलीय खड़ा होना निश्चित रूप से पार्टी की चुनावी गणित को प्रभावित कर सकता है। एक ओर जहां भाजपा को अपने ही बागी उम्मीदवार से चुनौती मिलेगी, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अब तक चुप्पी साधे हुए है और उसने अभी तक अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। ऐसे में कांग्रेस किस रणनीति के तहत आगे बढ़ेगी, यह देखने लायक होगा।नगर निकाय चुनाव में हर वार्ड की भूमिका अहम होती है। टिकट को लेकर जिस तरह असंतोष सामने आ रहा है, वह चुनावी समीकरण बदल सकता है। पार्टी को यदि अंदरूनी विरोध का सामना करना पड़ा तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस और अन्य निर्दलीय प्रत्याशियों को हो सकता है। अब देखने वाली बात होगी कि भाजपा नेतृत्व बागी नेताओं को मनाने में सफल होता है या नहीं।नगर निकाय चुनाव के इस सियासी घमासान में अब आगे क्या होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात तय है  की राह इस बार आसान नहीं रहने वाली।