छत्तीसगढ़ के दुर्ग के भिलाई में स्थिति 3 मंजिला अर्चना टॉवर विवादों में

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के भिलाई में स्थिति 3 मंजिला अर्चना टॉवर विवादों में

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के भिलाई में स्थिति 3 मंजिला अर्चना टॉवर विवादों में है। भिलाई निगम से BCC और नियमितीकरण नहीं मिली तो संचालक ने पूरी बिल्डिंग में रेंट का बैनर लगा दिया। सुजुकी कंपनी को किराए से दुकान दे दिया। जानकारी मिलते ही निगम ने शो रूम को बंद करा दिया।

दरअसल, महावीर जैन ने चंद्रा मौर्या टॉकीज के सामने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाया है। उन्होंने 3 मंजिला कॉम्प्लेक्स में 21 दुकानें हैं। करीब 5 साल से बन रहा यह टावर निगम से अनुमति न मिलने के कारण अभी तक नहीं खुल पाया है।सील करने के बाद भी किराए पर देने लगा दुकान

अर्चना टावर के संचालक ने पहले भी कई बार दुकानों को किराए पर देने की कोशिश की थी, लेकिन हर बार निगम के बिल्डिंग परमिट विभाग ने कार्रवाई कर दुकानों को सील कर दिया था। करीब 2 महीने से महावीर जैन ने दुकानों को फिर से किराए पर देने के लिए बैनर लगा रखा था।

उन्होंने सुजुकी मोटर्स के डीलर करण सुजकी को दुकान किराय पर दे दिया। सुजकी मोटर्स ने कई लाख रुपए खर्च करके दुकान को शो-रूम का लुक दिया। इसके बाद जैसे ही वो लोग शो-रूम की ओपनिंग करने वाले थे, निगम का अमला वहां पहुंच गया। निगम ने शो-रूम को खुलने से पहले ही बंद करा दिया। इसके साथ ही अर्चना टावर के संचालक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।नगर निगम के अपर आयुक्त अशोक द्विवेदी का कहना है कि अर्चना टावर को भवन अनुज्ञा प्रमाण पत्र नहीं मिला है। साथ ही उसका नियमितीकरण का प्रकरण भी रुका हुआ है। इस आधार पर वो दुकान को किराये पर नहीं दे सकते हैं। उन्हें दुकान को किराये पर देने की जानकारी मिली थी, जिसके बाद उन्होंने टीम को भेजकर उसे रुकवाया है।

इससे पहले भी की गई थी सील बंद की कार्रवाई

ये पहली बार नहीं है जब अर्चना टावर में निगम ने कार्रवाई की है। दो साल पहले भी संचालक ने टॉवर की कई दुकानों को किराय पर चढ़ा दिया था। इसके बाद निगम के भवन अनुज्ञा विभाग ने यहां की सभी 21 दुकानों को सील कर दिया था। इसके बाद ये मामला हाईकोर्ट तक भी पहुंचा था।

संचालक ने कहा अनुमति नहीं देना था तो बिल्डिंग क्यों बनने दिया

अर्चना टॉवर के संचालक महावीर जैन के बेटे पारस जैन ने कहा कि इसे पूरी बिल्डिंग को लेकर उनके साथ राजनीति की जा रही है। उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई लगाकर पहले जमीन की रजिस्ट्री कराई। उसके बाद निगम से बिल्डिंग परमिशन लिया। फिर भवन बनाना शुरू किया।

अगर निगम को अनुमति नहीं देना था तो फिर रजिस्ट्री क्यों होने दी। इतनी बड़ी बिल्डिंग क्यों बनने दी। आज उन लोगों ने अपनी संपत्ति बेचकर बड़ी पूंजी का निवेश कर दिया तो उन्हें परेशान किया जा रहा है।