फरसाबहार विकासखंड के ग्राम दक्षिण क्षेत्र में ओडिशा सीमा से लगे ग्राम हाथीबेड़ में इन दिनों 22 हाथियों के दल का जमावड़ा
फरसाबहार विकासखंड के ग्राम दक्षिण क्षेत्र में ओडिशा सीमा से लगे ग्राम हाथीबेड़ में इन दिनों 22 हाथियों के दल का जमावड़ा है। इस गांव के जंगल में हाथियों का प्रवेश पूरे 122 साल बाद हुआ है। हाथीबेड़ गांव का नाम ही अपने आप में खास है। यह वही स्थान है, जहां 122 साल पहले 22 हाथी पहुंचे थे। उस वक्त सरगुजा सम्राट ने हाथियों को यहां घेरकर रखा था और उन्हें पालतू हाथी बनाया था। इसके बाद अपने रियासत के 22 राजाओं को एक-एक हाथी बंटवाया था। अब जब फिर से इस गांव में हाथियों का दल पहुंचा है, तो ग्रामीणों ने हाथियों के लिए विशेष पूजा की है।
बुधवार को दल के एक नन्हे सदस्य के नामकरण के लिए पूजन कार्यक्रम रखा गया था। ग्रामीणों ने इस नन्हे हाथी का नाम गोलू रखा है।किसी गांव का नाम हाथीबेड़ होना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। इसलिए भास्कर ने हाथीबेड़ गांव का इतिहास जानना चाहा। यहां के ग्रामीणों व गांव के गौटिया उपत साय सिदार ने बताया कि सन 1900 तक यह गांव ढेगुरजोर के नाम से जाना जाता था। उस वक्त यह गांव जशपुर रिसायत के अधीन था और राजा राजा विशुनदेव सिंहदेव थे। सन 1902 में इस इस गांव में 22 हाथी पहुंचे थे और हाथियों के उत्पात की वजह से ग्रामीणों का यहां रहना मुश्किल हो गया था।
ग्रामीण परेशान हुए और जशपुर राजा विशुनदेव सिंहदेव के पास पहुंचे। राजा विशुनदेव ने इस समस्या का हल निकालने सरगुजा सम्राट से संपर्क किया। उस वक्त सरगुजा में महाराजा थे, जिनके अधीन में 22 रियासतें थीं। सरगुजा सम्राट ने महावतों की टीम को इस गांव में भेजा था। हाथियों को एक स्थान पर रोकने के लिए बेड़ा बनवाया था। कई सालों तक हाथियों को इस बेड़े के भीतर रखा गया था, उन्हें भोजन पानी दिया जाता था और इन हाथियों को पालतू बनाया गया था।
जब भारत आजाद हुआ तो यह क्षेत्र मध्यप्रदेश में आया। उस वक्त सरकारी रिकार्ड में इस गांव का नाम हाथीबेड़ा दर्ज हुआ और आज इसे हाथीबेड़ के नाम से जाना जाता है।गांव की रक्षा के लिए हुई पूजा हाथीबेड़ के सरना में पहुंच कर बैगा बकन कालो के माध्यम से शांति के लिए पूजा अर्चना की गई। पूजा स्थल को हल्दी पानी से छिड़काव कर पवित्र किया गया है। चूंकि ग्रामीण खेती शुरू कर चुके हैं, इसलिए पूजा के दौरान प्रार्थना की गई कि हाथी खेती की इस अवधि में जंगल में ही रहें। हाथी इलाके में किसी तरह का जानमाल का नुकसान ना पहुंचाए, इसके लिए ग्राम देवता से प्रार्थना की गई।