डॉक्टर पर बच्ची के साथ 13 वर्ष की उम्र से 14 सालों तक दुष्कर्म का आरोप, अब होगा DNA टेस्ट
बिलासपुर। डॉक्टर पर बच्ची के साथ 13 वर्ष की उम्र से 14 सालों तक दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए पीड़िता ने याचिका लगाई थी। पीड़िता का दावा है कि दुष्कर्म की वजह से उसने बच्चे को जन्म दिया। उसके विवाह के बाद भी मायके जाने पर डॉक्टर मारपीट कर दुष्कर्म करता रहा। पीड़िता ने सच सामने लाने के लिए डीएनए जांच की मांग करते हुए याचिका लगाई थी। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की बेंच ने याचिका मंजूर करते हुए पीड़िता, उसके बच्चे और आरोपी डॉक्टर के डीएनए टेस्ट की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए हैं।बस्तर के सुकमा में रहने वाली महिला इलाज के लिए पास के ही डॉक्टर के पास जाती थी। उसके साथ उसकी 13 साल की बेटी भी जाती थी। इस दौरान डॉक्टर ने बच्ची से छेड़छाड़ की। कुछ दिनों बाद उसने मारपीट कर धमकी देते हुए दुष्कर्म किया। आरोप है कि डॉक्टर वर्ष 2005 से लेकर वर्ष 2019 तक उसके साथ मारपीट और धमका कर जबरन दुष्कर्म करता रहा।इस बीच वर्ष 2010 में 18 वर्ष की उम्र पूरी होने पर उसकी मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में रहने वाले युवक से शादी कर दी गई। महिला जब भी अपने मायके आती, आरोपी डॉक्टर उससे दुष्कर्म करता। महिला का आरोप है कि डॉक्टर के दुष्कर्म की वजह से उसने नवंबर 2011 में बच्चे को जन्म दिया।जनवरी 2019 में वह अपने मायके आई थी। इसी दौरान 10 जनवरी 2019 की दोपहर डॉक्टर ने अपने क्लीनिक में दुष्कर्म किया। इसके बाद पीड़िता से मारपीट की। परेशान होकर पीड़िता ने सुकमा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। विवेचना के बाद पुलिस ने आरोपी डॉक्टर के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत जुर्म दर्ज करते हुए 11 मई 2022 को गिरफ्तार किया था। जुलाई 2022 में चार्जशीट प्रस्तुत किया और कोर्ट ने सितंबर 2022 में आरोप तय किए थे।आरोपी ने 11 मई 2022 को गिरफ्तारी के बाद अन्य डॉक्टरी जांच के साथ ही डीएनए टेस्ट के लिए अपनी सहमति दी। पुलिस ने उसी दिन सीजेएम कोर्ट में आवेदन प्रस्तुत कर डीएनए टेस्ट के लिए आरोपी, पीड़िता और उसकी बेटी के ब्लड सैंपल लेने की मांग करते हुए आवेदन प्रस्तुत किया।बाद में सीजेएम कोर्ट ने 22 जून 2022 को विवेचना अधिकारी को आरोपी, पीड़िता और बच्ची के ब्लड सैंपल लेने के निर्देश दिए, लेकिन आरोपी ने सहमति देने से इनकार कर दिया। इस पर पीड़िता ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। हाई कोर्ट ने 7 फरवरी 2024 को मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की बेंच ने कहा है कि पीड़िता अपने और नाबालिग बेटी के डीएनए टेस्ट के लिए सहमति दे चुकी है। मामले में वैज्ञानिक विश्लेषण की जरूरत है। ऐसे में सच सामने लाने के लिए डीएनए टेस्ट के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं है। हाई कोर्ट ने विवेचना अधिकारी को आरोपी, पीड़िता और उसकी बेटी के डीएनए टेस्ट के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।