400 साल से इस पेड़ की पूजा करते हैं लोग, माता के दर्शन से पूरी होती है हर मनोकामना!

400 साल से इस पेड़ की पूजा करते हैं लोग, माता के दर्शन से पूरी होती है हर मनोकामना!

शक्ति की आराधना के महापर्व नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है. इस नवरात्रि पर्व में देशभर में माता के अलग-अलग रूपों की आस्था और विश्वास के साथ पूजा की जा रही है. देवी के मंदिर में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर पहुंच रहे हैं. वहीं जांजगीर चांपा के लोग भी नवरात्रि धूम धाम के साथ मना रहे हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही देवी मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां माता का श्रृंगार पेड़-पौधों ने किया है और इन पेड़ों की रक्षा स्वयं माता रानी करती हैं. इस कारण से ही यहां सरई (साल) के पेड़ के नाम पर माता का नाम पड़ा है. लोग मां को सरई श्रृंगार के रूप में भी जानते हैं.

छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बलौदा से लगा हुआ गांव है डोंगरी. यहां मां सरई श्रृंगारिणी का मंदिर है. यहां चारों तरफ सरई (साल) के वृक्ष के साथ अन्य कई प्रकार के विशालकाय वृक्ष हैं, जिससे माता रानी का दरबार सजा हुआ है. कहा जाता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को शीतलता और शांति मिलती है. साथ ही माता श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं भी पूरी करती हैं. इसलिए भी माता रानी के प्रति यहां श्रद्धालुओं का अनूठा विश्वास है. यहां चैत्र और क्वांर नवरात्रि में श्रद्धालु मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कराते हैं.

सरई का पेड़ काटकर रख दिया था
मंदिर के सेवक अनिल शुक्ला ने बताया कि सरई श्रृंगार धाम में जो सरई के वृक्ष हैं, उनके महत्व के बारे में 400 साल पहले भिलाई गांव के एक साहू समाज के व्यक्ति ने बताया था. उस व्यक्ति ने जंगल में लकड़ी काटने जाते समय सरई का पेड़ काटकर रख दिया था. दूसरे दिन उसे लकड़ी लेने जब वह गाड़ा (एक तरह की गाड़ी) लेकर पहुंचा तो उसने देखा कि पेड़ की कटी हुई लकड़ी नहीं मिल रही थी, बल्कि पेड़ फिर से जुड़ गया था.


श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है
गाड़ा लेकर पहुंचे शख्स ने फिर से कटाई का प्रयास किया, लेकिन माता ने उसे रोका और उसे समझाया कि पेड़ को छोड़ देने की जरूरत है. इसके बाद भी व्यक्ति ने लकड़ी काटना जारी रखा, लेकिन बाद में उसकी मौत हो गई. इस घटना के बाद साहू समाज के लोग वनदेवी की आराधना करने लगे और पेड़ों की कटाई से डरने लगे. इसके बाद मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योति जलाई गई, जो आज भी करीब 35 साल से जल रही है. यह मंदिर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और ओडिशा के श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है.