कालाष्टमी के दिन कर लें एक आसान उपाय, काल भैरव होंगे प्रसन्न, भय और नकारात्मकता से मिलेगी मुक्ति
फरवरी 2024 का मासिक कालाष्टमी व्रत 2 फरवरी दिन शुक्रवार को है. यह माघ का भी मासिक कालाष्टमी व्रत है. कालाष्टमी व्रत वाले दिन काल भैरव की पूजा करने का विधान है. काल भैरव की पूजा का मुहूर्त देर रात 12 बजकर 08 मिनट से 01 बजकर 01 मिनट तक है. काल भैरव की पूजा निशिता मुहूर्त में की जाती है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, मासिक कालाष्टमी की तिथि 2 फरवरी शुक्रवार को 04:02 पीएम से लेकर 3 फरवरी को 05:20 पीएम तक रहेगी. कालाष्टमी वाले दिन अभिजीत मुहूर्त 12:13 पीएम से 12:57 पीएम मिनट तक है.
काल भैरव को प्रसन्न करने का एक उपाय
मासिक कालाष्टमी वाले दिन आपको काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए भैरव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. उससे पहले आप काल भैरव की विधि विधान से पूजा कर लें. उसके बाद उनकी इमरती, लगा हुआ पान आदि का भोग लगाएं. उसके बाद भैरव स्तोत्र का पाठ करें. यह स्तोत्र संस्कृत में लिखा है, इसका शुद्ध उच्चारण करते हुए पाठ करें. भैरव स्तोत्र का पाठ करने से भय दूर होता है. तंत्र-मंत्र की नकारात्मकता मिटती है. काल भैरव को तंत्र मंत्र का देवता माना जाता है. इनकी सिद्धि के लिए उनकी पूजा होती है. आइए जानते हैं भैरव स्तोत्र के बारे में.
महाकाल भैरव स्तोत्र
ओम महाकाल भैरवाय नम:
जलद् पटलनीलं दीप्यमानोग्रकेशं,
त्रिशिख डमरूहस्तं चन्द्रलेखावतंसं!
विमल वृष निरुढं चित्रशार्दूलवास:,
विजयमनिशमीडे विक्रमोद्दण्डचण्डम्!!
बिकट कटि कराळं ह्यट्टहासं विशाळम्!
करगतकरबालं नागयज्ञोपवीतं,
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम्!!
भैरव स्तोत्र
यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।
लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।
वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।।
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम्।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।