कलेक्टर से ज्यादा वेतन और खैरात की सुविधा, दुर्ग जिला अस्पताल का हाल
दुर्ग। लाखों करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी जिला अस्पताल दुर्ग में मनमाफिक सुविधा मरीजों को नहीं मिल रही है। संविदा में भर्ती किए गए डॉक्टरो को दो से तीन लाख रुपए प्रति महीना वेतन दिया जा रहा है। मगर वे डॉक्टर जिला अस्पताल के मरीजों को अपने निजी क्लिनिको में रेफर कर रहे हैं। लाखों करोड़ों रुपए की मशीन धूल खाते पड़ी है, लेकिन चलाने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। ऊंची ऊंची बिल्डिंग बना ली गई है मगर मरीज को सुविधा नहीं मिल पा रही है। आज भी लोग इलाज के लिए निजी अस्पतालों का सहारा लेते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि करोड़ों रुपए की स्थापना व्यय के साथ सरकार द्वारा संचालित दुर्ग जिला अस्पताल से आमजनों को फायदा क्यों नहीं मिल पा रहा है?
ऐसा भी नहीं है कि हालात में कोई सुधार नहीं आया है। स्थिति बदली है, लेकिन आज जमाना हाईटेक का है। ऐसे में अस्पताल प्रबंधन को भी हाईटेक होना चाहिए और मरीजों को यहां वहां भटकने अथवा समय वेस्ट करने से बचना चाहिए।
सूत्र बताते हैं कि दुर्ग जिला अस्पताल ग्रेड ए की अहर्ता प्राप्त चिकित्सालय है । इसे प्रदेश में मॉडल अस्पताल के रूप में विकसित किया गया है । यहां कुल 45 चिकित्सकों के पद है, जिनमें 22 कार्यरत है और 23 रिक्त पद है दो चिकित्सक काम पर नहीं आ रहे हैं।
जरूरत को देखते हुए 52 नियुक्ति संविदा में की गई है, जिनमें 22 डॉक्टर है, एक साइंटिस्ट और 22 टेक्नीशियन है। दो डाटा एंट्री ऑपरेटर और दो स्विपर के पद संविदा पर है। संविदा चिकित्सकों में 13 डॉक्टर ऐसे हैं जो ₹2 लाख रु महीना पगार पा रहे हैं । न्यूरो सर्जन के लिए 3 लाख और एमडी एनेस्थीसिया चिकित्सक ढाई लाख रुपए महीना वेतन प्राप्त कर रहे हैं। इसके बावजूद जिला अस्पताल में एनेस्थीसिया देने वाले चिकित्सक घूम घूम कर दुर्ग भिलाई के निजी अस्पतालों में भी अपनी सेवा देते हैं और वहां से भी तनख्वाह प्राप्त करते हैं ।
बताया गया कि आधा दर्जन विशेषज्ञ चिकित्सक ऐसे हैं जो जिला अस्पताल के अलावा निजी क्लीनिक को में लगातार सेवा दे रहे हैं। संविदा नौकरी कर रहे चिकित्सकों को डीएमएफ फंड से वेतन दिया जाता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत इन चिकित्सा कर्मियों को वेतन दिया जाता है।
कलेक्टर के वेतन से टक्कर..
जिला अस्पताल में तैनात रेगुलर डॉक्टर के बनिस्बत संविदा में ज्यादा संख्या में नौकरी कर रहे । क्योंकि इन चिकित्सकों को ज्यादा तन्नखा मिल रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोई चिकित्सक जिला अस्पताल में क्यों रेगुलर नौकरी करेगा। जिला अस्पताल में रेगुलर नौकरी के बजाय संविदा नौकरी में उन्हें ज्यादा फायदा दिखता है । शासन की नीतियां भी ऐसी है कि संविदा चिकित्सक अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं और नीजी क्लिनिको में इलाज भी करवा रहे हैं। सवाल यहां भी उठता है कि इन्हें डिस्टिक माइनिंग फंड से पगार क्यों दिया जाता है।
क्या रेफर करना ही रह गया काम..
जिला अस्पताल में आने वाले अक्सर मरीजों को निजी अस्पतालों अथवा रायपुर के लिए रेफर कर दिया जाता है। जिला अस्पताल में यहां तक डायलिसिस की भी सुविधा है। डायग्नोसिस से लेकर एक्स-रे, सोनोग्राफी कलर डॉपलर, सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध है। किंतु लोग बड़ी राशि खर्च कर निजी पैथोलॉजी एवं लैबोरेट्री सेंट्ररो में जाकर यह टेस्ट कराते हैं । क्या जिला अस्पताल सिर्फ रिफर करने का जगह बन गया है। ऐसा बताया जाता है कि सांठगांठ के चलते शहर के निजी अस्पतालों में जिला अस्पताल के कर्मचारी मरीजों को रेफर कर देते हैं।