खिचड़ी खाकर सोने चले जाते हैं भगवान राम, उत्तराखंड के राम मंदिर में मकर संक्रांति तक महापूजा
वैसे तो देवताओं का वास स्वर्ग में होता है, लेकिन देवभूमि उत्तराखंड भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है. यहां हिंदू आस्था से जुड़े सैकड़ों मठ-मंदिर हैं, जहां की विशेष मान्यताएं हैं. ऐसा ही एक मंदिर टिहरी गढ़वाल जिले की संगम नगरी देवप्रयाग में स्थित है. भगवान नारायण के इस मंदिर में श्रीराम की पूजा अर्चना होती है, लेकिन पौष के महीने में यहां विशेष पूजा का विधान है. देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में इन दिनों विशेष पूजा-अर्चना चल रही है. भगवान श्रीराम को समर्पित रघुनाथ मंदिर में मकर संक्रांति तक यह विशेष पूजा की जाएगी. सालभर में पौष माह के दौरान यहां विशेष पूजा अनुष्ठान का विधान है, जिसमें भगवान राम को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. वहीं भक्तों के दर्शन के लिए विशेष समय सीमा भी निर्धारित की जाती है.
रघुनाथ मंदिर के पुजारी और बद्रीनाथ के तीर्थ पुरोहित तनुज कोटियाल बताते हैं कि पौष माह में यहां महापूजा का विधान है. यह महापूजा मकर संक्रांति तक चलेगी. इस दौरान भगवान रघुनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है. यहां पूरे पौष माह में परम्परागत तौर पर भगवान श्रीराम की महापूजा होती है. साथ ही भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है.
भक्तों को बांटा जाता है खिचड़ी प्रसाद
तनुज कोटियाल बताते हैं कि पौष माह की महापूजा में बड़ी संख्या में श्रद्वालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं. सुबह-सुबह गंगा स्नान करने के बाद श्रद्धालु यहां भगवान के दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं. साथ ही भगवान को भोग लगने के बाद प्रसाद स्वरूप बंटने वाली खिचड़ी को ग्रहण करते हैं. वह कहते हैं कि इस दौरान एक निश्चित समय के लिए भगवान के दर्शन श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते हैं. उस समय भगवान शयन मुद्रा में होते हैं.
विष्णु का मंदिर राम के रूप में पूज्य
अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम स्थल जहां से आगे यह गंगा के रूप में नदी बहती है, उस संगम स्थल देवप्रयाग के ठीक ऊपर रघुनाथ मंदिर स्थित है. वैसे तो यह मंदिर भगवान विष्णु का है, लेकिन यहां श्रीराम की पूजा अर्चना व मूर्ति का श्रृंगार राम के रूप में होता है. माना जाता है कि देव शर्मा नामक ऋषि जिनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम देवप्रयाग पड़ा, उन्हें भगवान नारायण ने दर्शन दिए थे, लेकिन वह श्रीराम के रूप में उनके दर्शन चाहते थे. इसी वजह से यहां भगवान विष्णु की श्रीराम के रूप में पूजा युगों-युगों से की जा रही है.