नाबालिग के निजी अंगों को छूना यौन हमला नहीं’; सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में सजा घटाई

नाबालिग के निजी अंगों को छूना यौन हमला नहीं’; सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में सजा घटाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग लड़की के निजी अंगों को सिर्फ छूने के आरोप पर किसी व्यक्ति को दुष्कर्म एवं पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अपीलकर्ता लक्ष्मण जांगड़े की दोषसिद्धि को संशोधित किया और सजा बीस साल के कठोर कारावास से घटाकर सात साल कर दी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के 2024 के फैसले के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सीधा आरोप पीड़िता के निजी अंगों को छूने का था। अपीलकर्ता ने अपने निजी अंगों को भी छुआ था। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की थी। पीठ ने कहा, हम पाते हैं कि आईपीसी की धारा 376 एबी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 6 के तहत दर्ज दोषसिद्धि बरकरार नहीं रह सकती।

शीर्ष अदालत ने कहा, ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष और हाईकोर्ट की ओर से बरकरार रखी गई यह धारणा कि ‘पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ हुआ था, इससे कायम नहीं रह सकती कि न तो मेडिकल रिपोर्ट, न ही पीड़िता के तीन अलग-अलग मौकों पर दिए बयान और न ही पीड़िता की मां के बयान इसका समर्थन करते हैं।

अपीलकर्ता को बीस साल के कठोर कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। लड़की के बयानों का हवाला देते हुए अपीलकर्ता के वकील का तर्क था, पीड़िता के साथ असल में दुष्कर्म नहीं हुआ क्योंकि पेनेट्रेशन नहीं हुआ था। उन्होंने कहा, पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 भी लागू नहीं होगी क्योंकि पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट नहीं हुआ था।

सरकार ने कहा, सहानुभूति की जरूरत नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार (याचिका का विरोध करते हुए) :
 अपीलकर्ता के प्रति सहानुभूति की जरूरत नहीं है क्योंकि उसने 12 साल की किशोरी से अपराध किया है।
पीठ : रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों से पता चलता है कि यह अपराध न तो आईपीसी की धारा 375 और न ही पॉक्सो की धारा 3(सी) के प्रावधानों को पूरा करता है। एफआईआर, पीड़िता व गवाहों के बयानों के तहत यह अपराध आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9(एम) के दायरे में आएगा।