पहला चुनाव होगा अरुण वोरा का बिना स्वर्गीय मोतीलाल वोरा के
दुर्ग। 2023 के विधानसभा चुनाव में दुर्ग शहरी सीट के प्रत्याशी अरुण वोरा सत्ता विरोधी समीकरण में उलझते दिखाई दे रहे हैं पूर्व में अरुण वोरा की रहा आसान मानी जा रही थी। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे जमीनी समीकरण बदलते जा रहे हैं। मतदाताओं से चर्चा करने पर वह कहते हैं कि दुर्ग शहरी सीट पर परिवर्तन की हल्की लहर है ।लोग एक ही परिवार के राजनीतिक विरासत से ऊब रहे हैं। खास तौर पर नई पीढ़ी चाहती कि नए लोगों को भी अवसर मिले। यह बात सिर्फ परिवारवाद की नहीं ,बल्कि नए बदलते लोकतांत्रिक मूल्यों की भी है ।उसके आगे जाकर देखें तो कांग्रेस से ऐसे कार्यकर्ताओं जो कई दशकों से पार्टी के बड़े सिपासालार हुआ करते थे ,वह भी आज कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में हवा बनाने से बच रहे हैं ।अंदरूनी तौर पर कहना गलत ना होगा कि वह ही लोग अरुण वोरा के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। यह पहला चुनाव होगा जब अरुण वोरा अपने पिता कांग्रेस के धुरंधर नेता स्वर्गीय मोतीलाल वोरा के बिना लड़ रहे हैं ।स्वर्गीय मोतीलाल वोरा के रहते कांग्रेस के सारे कार्यकर्ता वह पदाधिकारी शांति से अरूण वोरा के पक्ष में काम करने लग जाते थे। मगर इस बार पिता की छत्रछाया ना होना अरुण वोरा के लिए खतरे की घंटी बजा रही।
अरुण वोरा पिछले 10 सालों से विधायक हैं । पिछले 2013 के सत्र में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार नहीं थी मगर अभी 5 सालों से छत्तीसगढ़ राज्य में भूपेश बघेल की लोकप्रिय सरकार है और अरुण वोरा को कैबिनेट मंत्री का दर्जा है। नगर निगम में भी उनके करीबी धीरज बाकलीवाल महापौर है। ऐसे अनुकूल हालातो में अरुण वोरा की उपलब्धियो पर जनता की पैनी निगाह है ।कुछ लोग सोचते हैं कि विकास कार्यों में शहर पीछे रह गया और उसके जिम्मेदार शहर के विधायक हैं। मगर ऐसे भी लोगों की संख्या कम नहीं जो शहर में हुए इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अरुण वोरा को श्रेय देते हैं।।