नए कानून को ले कर दुर्ग पुलिस ने किया कार्यशाला का अयोजन, दुर्ग कलेक्टर,IG,SP सहित दुर्ग के जनप्रतिनिधि रहे मौजूद
भिलाई। सोमवार को नवीन कानूनों के शुभारंभ अवसर पर दुर्ग जिले के सभी थानों में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य आयोजन सेक्टर 6 पुलिस कंट्रोल रूम में हुआ जिसमें नवीन भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा और भारतीय साक्ष अधिनियम की जानकारी दी गई। इस दौरान, दुर्ग संभाग आयुक्त, कलेक्टर सुश्री ऋचा प्रकाश चौधरी, IG रामगोपाल गर्ग, SP जितेंद्र शुक्ल, दुर्ग विधायक गजेंद्र यादव, वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन सहित बड़ी संख्या में स्कूली बच्चें और नागरिक मौजूद थे।
- वहीं सुपेला थाना में आयोजित कार्यक्रम में थाना प्रभारी राजेश मिश्रा, क्षेत्रीय विधायक रिकेश सेन, नागरिकगण चंदेश्वरी बान्धे, राजा बंजारे, पार्षद संदीप निरंकारी, जानकी देवी, मदन जायसवाल, अनिल सिंह, रविशंकर कुर्रे, पार्षद केशव चौबे, नेता प्रतिपक्ष नगर निगम भिलाई भोजराज सिन्हा, पुरूषोत्तम देवांगन, रमा राजपूत, मनोज तिवारी, रूपराम साहू आदि उपस्थित थे. आगन्तुक गणमान्य नागरिक को नवीन कानून के संबंध मे जानकारी दी गई।
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भरतीय चिंतन पर आधारित न्याय प्रणाली
- . इन कानूनों का उद्देश्य भारतीय कानूनी प्रणाली में सुधार करना और भारतीय सोच पर आधारित न्याय प्रणाली स्थापित करना है।
नए आपराधिक कानून 'लोगों को औपनिवेशिक मानसिकता और उसके प्रतीकों से मुक्त करेंगे' और हमारे मन को भी उपनिवेशवाद से मुक्त करेंगे।
यह 'दंड के बजाय न्याय पर ध्यान केन्द्रित' है। '
सबके साथ समान व्यवहार' मुख्य विषय है।
यह कानून भारतीय न्याय संहिता की वास्तविक भावना को प्रकट करते हैं।
इन्हें भारतीय संविधान की मूल भावना के साथ बनाया गया है।
यह कानून व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।
यह मानव अधिकारों के मूल्यों के अनुरुप है। यह पीड़ित-केन्द्रित न्याय सुनिश्चित करेंगे।
इन कानूनों की आत्मा न्याय, समानता और निष्पक्षता है।
पीड़ित-केन्द्रित दृष्टिकोण
यह पीड़ित को आपराधिक कार्यवाही में एक हितधारक के रूप में मान्यता देता है तथा उसे मुकदमा वापस लेने से पूर्व सुने जाने का अधिकार प्रदान करता है। (धारा 360 बीएनएसएस)
पीड़ित को FIR की एक प्रति प्राप्त करने तथा उसे 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार है। (धारा 193 (3) (ii) बीएनएसएस)
. गवाहों को धमकियों और भय से बचाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, गवाह संरक्षण योजना की शुरूआत की गई। (धारा 398 बीएनएसएस)*
बलात्कार पीड़िता का बयान केवल महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा और उसकी अनुपस्थिति में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा। (धारा 183 (6) (ए) बीएनएसएस)-
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS)
मुख्य परिवर्तन
- आईपीसी में धाराओं की संख्या 511 से घटाकर बीएनएस में 358 कर दी गई।
20 नये अपराध जोड़े गए।
कई अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है।
6 छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है।
कई अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है।
कई अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है।
कुछ विशेषताएं
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को एक अध्याय में समेकित किया गया है।
धारा 69: झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।
धारा 70(2): सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS)
मुख्य परिवर्तन
- सीआरपीसी में धाराओं की संख्या 484 से बढ़ाकर बीएनएसएस में 531 की गई।
177 धाराओं को प्रतिस्थापित किया गया।
9 नई धाराएं जोड़ी गई।
14 धाराएं निरस्त की गईं।
कुछ विशेषताएं
- जांच में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दिया गया है
मजिस्ट्रेट द्वारा जुर्मानों में वृद्धि की गई है।
FIR प्रक्रियाओं और पीड़ितों की सुरक्षा को सुव्यवस्थित करना।
धारा 173: जीरो FIR और e-FIR का प्रावधान किया गया है।
धारा 176 (1) (ख): यह कानून ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पीडित को बयान रिकॉर्डिंग का अधिकार देता है। -
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, *2023 (BSA)* मुख्य परिवर्तन
- आईईए में धाराओं की संख्या 167 से बढ़ाकर बीएसए 170 की गई।
24 धाराएं बदली गई।
2 नई धाराएं जोड़ी गई।
6 धाराएं निरस्त की गईं।
कुछ विशेषताएं
- इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है।
डिजिटल साक्ष्य प्रामाणिकता के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
धारा 2 (1) (घ): दस्तावेजों की विस्तारित परिभाषा
धारा 61: डिजिटल रिकॉर्ड की स्वीकार्यता में समानता दी गई है।
धारा 62 और 63: इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता दी गई है।
महिलाएं और बच्चे
- नए आपराधिक कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए 37 धाराएं शामिल हैं।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को पीड़ित और अपराधी दोनों के संदर्भ में लिंग तटस्थ बनाया गया है। (धारा 2 बीएनएसएस)
18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। (धारा 70 बीएनएस)
झूठे वादे या छद्म पहचान के आधार पर यौन शोषण करना अब आपराधिक कृत्य माना जाएगा। (धारा 69 बीएनएस)
चिकित्सकों को बलात्कार से पीड़ित महिला की मेडिकल रिपोर्ट सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी को भेजने का आदेश दिया गया है। (धारा 51 (3) बीएनएसएस) -
मय पर और शीघ्र न्याय
- समयावधि के लिए बीएनएसएस में 45 धाराओं को जोड़ा गया है।
. आरोप पर पहली सुनवाई के प्रारंभ से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाएंगे। (धारा 251 बीएनएसएस)
.आरोप तय होने की तारीख से 90 दिन पूरे होने के बाद घोषित अपराधियों के खिलाफ अनुपस्थिति में अभियोजन की कार्यवाही शुरू होनी चाहिए। (धारा 356 बीएनएसएस)
अभियोजन के लिए मंजूरी, दस्तावेजों की आपूर्ति, प्रतिबद्ध कार्यवाही, निर्वहन याचिकाओं को दाखिल करना, आरोप तय करना, निर्णय की घोषणा और दया याचिकाओं को दाखिल करना निर्धारित समयसीमा के भीतर पूरा करना अनिवार्य किया गया है। (धारा 251, 258 बीएनएसएस)
. आपराधिक कार्यवाही में दो से अधिक स्थगन देने की अनुमति नहीं है। (धारा 346 बीएनएसएस) समन जारी करने और उसकी तामील करने तथा न्यायालय के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग। (धारा 530 बीएनएसएस)
अपराध एवं दंड को पुनर्परिभाषित किया गया
छीनाझपटी एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर- शमनीय अपराध है। (धारा 304 बीएनएस) 'आतंकवादी कृत्य' की परिभाषाः इसमें ऐसे कृत्य शामिल हैं जो भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं या किसी समूह में आतंक फैलाते हैं। (धारा 113 बीएनएस)
'राजद्रोह' में परिवर्तनः राजद्रोह' के अपराध को समाप्त कर दिया गया है तथा भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करने के लिए 'देशद्रोह' शब्द का प्रयोग किया है। (धारा 152 बीएनएस) 'मॉब लिंचिंग' को एक ऐसे अपराध के रूप में शामिल किया गया जिसके लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड है। (धारा 103 (2) बीएनएस) संगठित अपराध को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। (धारा 111 बीएनएस)
पुलिस की जवाबदेही और पारदर्शिता
तलाशी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य है। (धारा 105 बीएनएसएस)
कोई भी गिरफ्तारी, ऐसे अपराध के मामलों में जो तीन वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय है और ऐसा व्यक्ति जो गंभीर बीमारी से पीड़ित है या 60 वर्ष से अधिक की आयु का है, ऐसे अधिकारी, जो पुलिस उप-अधीक्षक से नीचे की पंक्ति का न हो, की पूर्व अनुमति के बिना नहीं की जाएगी। (धारा 35 (7) बीएनएसएस)- गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती और जांच में पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के लिए 20 से अधिक धाराएं शामिल की गई हैं। असंज्ञेय मामलों में, ऐसे सभी मामलों की दैनिक डायरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को पाक्षिक रूप से भेजी जाएगी। (धारा 174 (1) (ii) बीएनएसएस)
नागरिक केन्द्रित कानून
- भारतीय लोकाचार को अपने मूल में रखने वाले नए आपराधिक कानून अधिक नागरिक केन्द्रित बनने की दिशा में बदलाव के प्रतीक हैं।
बीएनएसएस की धारा 173 (1) में नागरिकों को मौखिक अथवा इलेक्ट्रॉनिक संचार (ई- एफआईआर), बिना उस क्षेत्र पर विचार किए जहां अपराध किया गया है, एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है।
बीएनएसएस की धारा 173 (2) (1) के तहत नागरिक बिना किसी देरी के पुलिस द्वारा अपनी एफआईआर की एक निःशुल्क प्रति प्राप्त करने के हकदार हैं।
बीएनएसएस की धारा 193 (3) (ii) के तहत पुलिस को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में पीड़ित को सूचित करना अनिवार्य है।
बीएनएसएस की धारा 184 (1) के अनुसार पीड़िता की मेडिकल जांच उसकी सहमति से और अपराध की सूचना मिलने के 24 घंटे के भीतर की जाएगी। बीएनएसएस की धारा 184 (6) के तहत मेडिकल रिपोर्ट चिकित्सक द्वारा 7 दिनों के भीतर भेजी जाएगी।